Wednesday, December 31, 2008

नया साल है लेकिन अपना वही हाल है.....

नया साल है लेकिन अपना वही हाल है,

नए सपने का फिर बुना जंजाल है, पुरानो सपनो का भी भंडार है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है....

सरकारों की वही चाल है, सबकी अपनी रोटी दाल है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है,

महंगाई की वही मार है, ना सबको यहाँ अब रोज़गार है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है,

जोश का भी कहाँ सवाल है, भय का चारो और हाल है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है,

ओबामा का हर जगह नाम है और जूतों का भी नया आयाम है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है,

दिल अब भी बेकरार है, शहनाई का इंतज़ार है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है,

करने अभी बहुत काम है, आराम का न नामोनिशान है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है,

कलम की भी शान बढ़ानी है, लोगो को कविताएँ पढ़वानी है,
नया साल है लेकिन अपना वही हाल है.......

SACHIN JAIN

Thursday, December 25, 2008

हर दिन नई बात, हर शाम नए ख्यालात,

हर दिन नई बात, हर शाम नए ख्यालात, फिर एक नई रात और फिर एक नया सपना...............हर रात एक नया सपनाहर दिन नई बात, हर शाम नए ख्यालात, फिर एक नई रात और फिर एक नया सपना...............हर रात एक नया सपना

Thursday, November 13, 2008

दिल लगाकर लोग अक्सर पछताते हैं

दिल लगाकर लोग अक्सर पछताते हैं ,
जीवन में अक्सर वो दुःख पाते है ,
कभी डरते हैं जमाने से, कभी घबराते हैं बेवफाई से,
फिर भी जाने क्यों ये दिल लगते हैं,
हम तो सच कहते हैं तुमसे आज,
हम तो डरते है जमाने से भी, घबराते हैं बेवफाई से भी,
इससलिए तो उनको दूर से देखकर आते है,
नहीं कहते कभी उनसे की उन्हें दिलोजान से चाहते है,
बस कागज़ पर लिख कर दिल की बातों को चंचल मन बस में लाते है.................

Wednesday, October 22, 2008

सूरज तुम जलते रहना, सूरज तुम जलते रहना,

This is the very first few line of my writing, It was in September 2002.

सूरज तुम जलते रहना, सूरज तुम जलते रहना,
तुम्ही से जीवन, तुम्ही से तन मन,तुम्ही से धूप और ये छाँव,
दिन और ये रात तुमने बनाए, प्रक्रति की कैसी लालिमा दिखाई,
दिया तुमने हमको ये जीवन निराला, जो तुम पर है निर्भर मांगे तुम्हारा उजाला,
आखिर क्यों तुमको पड़ता है जलकर भी जीना, क्या आता नहीं कभी तुम्हे पसीना,
क्यों तुम्हे दूसरों के लिए तडपना, क्या कोई नहीं है तुम्हारी सुनने वाला,
या कोई अन्य ही है कारण, या ये जलता ही है अकारण,
इसी उधेड़बुन में मैं हो गया परेशान, पर जल्द ही मिल गया मुझे समाधान,
उसी रात सूरज मेरे सपने मैं आया, उसने मुझे ये समझाया,
अरे अपने लिए तो सबको है जीना, बहाए जो दूसरों के लिए पसीना,
जो आए दूसरों के सदा काम, वही है सचमुच महान,
यही सोच कर मैं जलता हूँ, इसलिए ही उजाला करता हूँ,
सूरज के ऐसे विचार सुनकर, मैं बैठ गया बिस्तर से उठकर,
मन मैं सूरज के लिए श्रधा के भाव जागे, हम मनुष्य कुछ भी नहीं सूरज के आगे,
हमे भी चाहिए कुछ ऐसे जीना, की किसी के काम आए अपना पसीना,
तभी हम सचे मनुष्य कहलाएंगे, अपना जीवन सफल कर जाएंगे....................

Tuesday, October 21, 2008

समय का बीतना तो एक सत्य है



समय का बीतना तो एक सत्य है,
उस पर विचार का कोई औचित्‍य नही है,
विचार तो इस बात पर होना चाहिए कि,
बीते हुए समय ने हमें क्या दिया,
मीठे यादें, सुनहरे सपने, कुछ ज्ञान,कुछ विज्ञान,
अजनबी लोग, अनुभव,कुछ असफ़लताएं, कुछ सफ़लताएं,
और ऎसा बहुत कुछ जो इस जीवन के लिए जरूरी था..........



This image is provided by Madhur kashyap. See his other arts at http://physiologoius.deviantart.com.

Saturday, October 11, 2008

मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं........



मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,
सर्वश्रेष्ठ हूँ मैं, हर पंथ (religion) को मैं सर्वश्रेष्ठ ही पाऊँ,

कभी मैं कृष्ण को अपना कहूं, कभी मैं राम का हो जाऊं,
कभी महावीर मुझे अपने लगे, कभी मैं बुद्ध की शरण में जाऊं,
देवी से मिन्नतें करू, साईं की भी कृपा मैं मांगू,
पैगम्बर पर भी मथ्था टेकू, इशु को भी गले लगा लूं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,

कभी मैं देखो मंदिर जाऊं, कभी ना मंदिर को अपनाऊं,
फिर भी मैं चर्च-पीर के आगे शीश अक्सर झुकाकर जाऊं,
गीता मुझसे तुम पढ़वाओ, चाहे रामायण का पाठ करालो,
कुरान-बाइबल को भी मैं गीता-रामायण जैसा ही तो पाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,


तुलसी स्वास्थ्यवर्धक है, इसलिए उसको पूज कर आऊं,
प्रक्रति पर हम निर्भर है, देव उनको मैं इसलिए बताऊँ,
अन्याय के खिलाफ लडो,रामायण-गीता में मैं ये सिखलाऊं,
गलत कुछ भी करने से पहले, मैं उस का डर दिल में पाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,

होली पर रंगों से खेलूँ और दीवाली दीप जलाऊं,
नवरात्रों में देवी को पूजूं, दशहरे पर रावन को फून्कूं,
फसले आने पर पर लोहणी और बसंत मनाऊं,
ईद-क्रिसमस भी मैं होली और दीवाली बनाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,


बुरा मुझे बुरा लगे, हिन्दू हो या कोई और हो,
भला मुझे भला लगे, हिन्दू हो या कोई और हो,
हिंदुत्व मुझे यही सिखाता, भले को अपनाकर बुरे से दूर जाऊं,
जीवन अपना इसलिए है की किसी के काम आऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,

गर्व है मुझको हिदुत्व पर जिसने मुझको ये समझाया,
बुरा ना कोई होता,दिल में सबके प्रेम है,
कुछ लोगो की चालें है ये, दिलो में जो ना मेल है,
इन चालों को मिटाता जाऊं, मैं बस प्यार बढाता जाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,

कोई कहे पचपन करोड़, कोई कहे एक सौ करोड़ देवता है,
चार वेद,अठारह पुराण,एक सौ आठ उपनिषद कुछ स्मृतियां भी हैं,
रामायण, महाभारत,गीता और न जाने कितने है,
वो एक रूप अनेक, अन्याय से लड़ और कर्म कर बस मैं तो ये ही बतलाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,

धरम के नाम पर मैंने भी बहुत सी रूढियां लिखी है,
सच है ये की कभी मैंने भी लोगो से खिलवाड़ किए,
धरम की ही सीख से मैं आत्मा की सुन पाऊं,
डरूं नहीं, झुकूं नहीं बस सही को ही अपनाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,

सभ्यता का बड़ा समुन्दर है मुझको ये है समझाने को,
वो है एक रूप अनेक, ना कोई बड़ा और ना कोई है छोटा,
कर्म-धर्म सब यहीं है फलने, किसी को भी चाहे अपनाऊँ,
उसको पूजूं या ना पूजूं, हर जान बस एक इंसान को ही पाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं,

माँ-बाप मेरे हिन्दू है , मैं भी हिन्दू कहलाया,
सब धर्मो का आदर यहाँ, सब को सम्मान मैं दे पाऊं,
धर्म की सीख से ही भगवान् से पहले भी मैं इंसानियत को पूज पाऊं,
आज़ादी है मुझको यहाँ किसी को भी मैं अपनाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं मन की मैं करता ही जाऊं,

साम्प्रदायिकता के नाम पर हिन्दू का देखो जो विरोध जताते हैं,
धर्म का मतलब जीवन दर्शन, ये वो समझ न पाते हैं,
जिन लोगो को ज्ञात नहीं खुद के जीने का मतलब,
उनकी बातों को मैं लोगो क्यों अपने दिल से लगाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं मन की मैं करता ही जाऊं,

धर्म का अर्थ जीवन दर्शन है, ये कैसे मैं समझाऊं,
रास्ते इनेक मंजिल है एक, ये मैं कैसे दिखलाऊं,
सबकी अपनी कोशिश है उस तक पहुँच पाने की,
सबकी कोशिश को देखो मैं सही रास्ता दिखलाऊं,
मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं मन की मैं करता ही जाऊं...........


I liked the thoughts on this post http://hrudyanjali.blogspot.com/2008/10/blog-post_11.html and http://hrudyanjali.blogspot.com/2008/10/blog-post_7859.html
and after that wrote this.

The above picture have been designed by Madhur Kashayap, who is working with me in Freescale. I would like to thank him for let me using this picture for the post.

SACHIN JAIN

Tuesday, October 07, 2008

मुश्किलें जीने का सहारा बन गई.......

मुश्किलें जीने का सहारा बन गई,
जिस दिन जीवन की हकीकत समझ आई मुझे,
सोचा ना तकलीफें आई तो क्या जिन्दगी बिताई ,
ना इम्तहान देने पड़े इस जीवन में तो ,
अपने जीने का मतलब ही क्या रह जाएगा ,
पूरा करने की कोशिश में इन इम्तहानो को ,
कुछ ख्वाब बन ही जाते हैं ,
और अक्सर ख्वाब टूट जाया करते हैं ,
पर क्या ख्वाब टूटने से इंसान भी टूट जाते हैं,

मेरे ख्याल में नहीं …………

ख्वाब टूटने से एक अनुभव जुड़ता हे ,
जोश दुगना करके फिर से ख्वाब पूरा करने की कोशिश करनी पड़ती हे ,
फिर कुछ ख्वाब टूट जाते हैं कुछ पूरे हो जाते हैं ,
यही ख्वाब ही तो जीवन को मकसद देते हैं ,
नहीं तो बिना मकसद ये जीवन किस काम का ,
जब हमे ना ये पता की हम कहाँ से आए हैं ,
और ना ये पता की कहाँ जाना हे ,
जिए जाते हैं हम सब जिए जाते हैं …..
बस शायद इन ख्वाबों को पूरा करने को ,
जिए जाते हैं…………………..

सचिन जैन

Monday, October 06, 2008

जिन्दगी बहुत से इम्तहान लेती है..........

जिन्दगी बहुत से इम्तहान लेती है ,
कई बार तो बिलकुल तोड़ देती है,
सभी ख्वाइशें पल में बिखर जाती हैं,
सभी चाहतें दिल में दबी रह जाती हैं,
कुछ ना कर पाए ऐसे उलझ जाते हैं,
हम इन्सान तो कुछ समझ ना पाते हैं ,
खुद पर यंकी करना और लड़ते रहना ,
हम इंसानों का यही तो हे काम ,
हिम्मत और धेर्य ही तो बनाते जीवन महान ,
इम्तहान तो जीवन के साथ लगे ही रहेंगे,
बिना इनके तो जीवन सूना ही रहेगा ,
हर इम्तहान मुस्कराकर देना है,
हर समय कुछ नया करने की सोचना,
हो जाए तो ठीक वर्ना फिर एक नई तम्मना,
ये तम्म्नाए ही तो जीवन को नया रूप देंगी,
एक अलग पहचान इस जीवन की छोड़ देंगी...........

Sunday, October 05, 2008

समय का बीतना........

समय का बीतना तो एक सत्य है ,
उस पर विचार का कोई औचित्‍य नहीं है,
विचार तो इस बात पर होना चाहिए कि,
बीते हुए समय ने हमें क्या दिया,
मीठी यादें, सुनहरे सपने,
कुछ ज्ञान, कुछ विज्ञान, अजनबी लोग,
अनुभव,कुछ असफ़लताएं, कुछ सफ़लताएं,
और ऎसा बहुत कुछ जो इस जीवन के लिए जरूरी था.......................

सचिन जैन

Tuesday, September 30, 2008

क्या लिखूं अब तो कलम भी रुक गई है मेरी


क्या लिखूं अब तो कलम भी रुक गई है मेरी,
दिल पूछता है मुझसे यहाँ कौन हिन्दू है कौन मुसलमान,
मरने वाला तो हर कोई था बस इंसान,
मतलब नहीं है इन सबको अब इंसानियत समझाने का,
अब तो वक्त है दोस्तों कुछ कर दिखाने का,
मतलब मेरा ये नहीं की हम भी आनाक्वादी बन जाएं,
ये भी नहीं कहीं हम भी विस्फोट करा के आएं,
बस इतनी ही इल्तजा है मेरी सब से,
सब धरम अपना भूल कर इंसानियत को अपनाएं,
और इन मजहबी दुश्मनों को ये समझाएं,
कोशिशे कितनी भी कर लो टूट हम ना पाएंगे,
धर्म-मजहब किसी का भी नाम दो आतंकवाद को मिटाएंगे,
दिलो में दूरियां भले ही दिखती हो हमारे लेकिन,
देश और इंसानियत पर खुद को भी मिटाएंगे....................

SACHIN JAIN

Monday, September 29, 2008

साहित्य

साहित्य
हर शब्द हो तीर सा,हर भाव हो कटार सा,
हर एक वाक्य पर लगे कि सच कहा और बस सच कहा,
लगे जब कि हर “मैं” से जुडा है व़जूद मेरा,
लगे जब कि हर “तुम” में है कोई अपने पहचान का,
लगे जब कि कितना करीब मेरे है “इसकी” कहानी,
लगे जब कि “वही” है मेरी सच,मेरी ही कहानी,
हर शक्स की पहचान का “जिसमें” हो दर्शन,
जीवन की उल्झन का “जिसमें” हो चित्रण,
मनुष्य के भावों का “जिसमें” हो वर्णन,
दिलो दिमाग पर “वो” एक असर छोड़ जाए,
कुछ करे “वो” अपने युग का प्रतिनिधित्व,
कुछ कहे “वो” आने वाले युग की कहानी,
कुछ छाप छोड़ जाए “वो” बीते युग की,
“उसी” को कहुँ मैं सच्चा साहित्य ,
“वही” है सचमुच सच्चा साहित्य ,

Ye kavita mene ek naatak "Ek Aur Draunachary" dekhkar likhi thi.Us naatak me aaj ke yug ke ek vyakti ki tulna MAHABHARAT ke Draunachary se ki gai thi.Usme un dono(aaj ka vyakti aurMAHABHARAT ke Draunachary) antarman ka dwand bahut hi sundar terike se dikhya gaya tha.Isko dekhkar aisa laga ki "RAMAYAN AUR MAHABHARAT" aise mahakavya kisi bhi yug ke saath jode jaa sakte hein.Yahi unki mahantaa he.
सचिन जैन

Friday, September 26, 2008

पहले सुनते थे की मदद पडोसी से आती है आतंकवाद को,

पहले सुनते थे की मदद पडोसी से आती है आतंकवाद को,
अब देश के पैसो से ही ये आतंकवाद को पालते है,
सरकार हमारी समर्थन करती, वोट बैंक के लालच में,
लोकतंत्र के नाम पर नोतेतंत्र तो था ही दोस्तों,
अब नोतेतंत्र से भी खतरनाक वोटतंत्र चलती है,
कुर्सी की दौड़ में पहले भी छिप-छिप कर बहुत खेल हुए,
इस बार तो ना खेल रहा ना दौड़ रही,
ईमान,धरम को मरे तो हुए बरसों मेरे यारो,
बची हुई शर्म की भी शमशान को कंधा दे आए....

जैसे जैसे बारिश की बूंदे जमीन पर पड़ती हैं...


जैसे जैसे बारिश की बूंदे जमीन पर पड़ती हैं,
वैसे ही एक नशा सा दिल में उतरने लगता है,
इस सुहाने मदहोश मौसम में ,
बिना पीए भी तन ये बहकने लगता है,
बस आँखे बंद करके सोचते रहो किसी के बारे में,
दिल तो बस हर बार यही कहने लगता है ,
बदन से एक भीनी सी खुसबू आती है,
जीवन भी महकने सा लगता है,
होठों को रखकर खामोश हमेशा के लिए,
आँखों से बातें करने का दिल करता है,
जैसे लुटा रहा है आसमान बूंदों को ,
किसी पर अपना प्यार लुटाने का दिल करता है,
कुछ नए अरमान जगाकर इस भीगे मौसम में,
किसी को अपना बनाना का दिल करता है,
पड़-पड़ की आवाज़ सुनकर बूंदों की ,
धक-धक सा दिल ये बार-बार करता है,
दीवाना कहीं में हो ना जाऊं इस मौसम में,
दिल को डर हर बार यही लगता है………………

SACHIN JAIN

Sunday, September 21, 2008

चल रहा हूँ मैं तलाश में जिंदगी की..

चल रहा हूँ मैं तलाश में जिंदगी की, और यूँ ही ख़त्म हो रही है जिंदगी मेरी,
ना तलाश हुई मेरी पूरी अब तक, ना रुकी जिंदगी तलाश के इंतजार में,
हर वक्त कुछ नया करने का नशा, जुनून की तरह सवार है मुझ पर,
कुछ पाने की कोशिश में भटक रहा हूँ मैं इस दुनिया की भीड़ में,
कुछ नाम छोड़ जाने की कोशिश में, खुद को ही शायद भुला रहा हूँ मैं,
थोडी पहचान बनाने की खातिर, खुद को मिटा रहा हूँ मैं,
और तलाश तो ये पूरी हो नहीं रही, पर शायद ख़त्म हो रही है जिंदगी मेरी.............

Thursday, September 18, 2008

मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है......

मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है,
दिलों में दूरियां तो पहले ही थीं, अब चिंगारियां भी लगाई हैं,
इबादत का मतलब भी मालूम नहीं जिन्हें शायद,
धमाकों को वो खुदा की इबादत कहते हैं,
किताबें पढ़ने की उम्र में किसी ने बम भी बनाए हैं,
पूछो जरा लोगों से कि किस धर्म ने इसको इबादत कहा है,
मानवता की मौत जब होती है, जीत का अहसास किसी को होता होगा,
इंसानियत की ताकत का अंदाजा नहीं दहशतगर्दो को,
इसको आसानी से दहलाया नहीं जा सकता........................

Monday, September 15, 2008

आदमी डर रहा आदमी से यहाँ, क्यों हमने बनाया ऐसा अपना जहाँ,

आदमी डर रहा आदमी से यहाँ,
क्यों हमने बनाया ऐसा अपना जहाँ,
मह्कानी थी जहाँ प्यार खुशबू,
बहानी थी जहाँ अमन की हवा,
फैलाया वहां नफरतों का धुआं,

चमन में बहार थी कितनी,
फिजा में प्यार था कितना,
उसको हटाकर हमने,
बहाई दुश्मनी की हवा,
जिसके थपेडों से बचना है मुश्किल यहाँ,

बागों में फूल थे कितने ,
कितनी कलियाँ महका करती थी,
हमको वो भी अच्छी नहीं लगी ,
उजाड़कर उनको सिर्फ काटें लगे हमने,
जो उधेड़ रहे आदमी की खाल को यहाँ,

क्यों आदमी भूल गया अपनी पहचान को,
इस दुनिया के सबसे सभ्य जीव के नाम को ,
क्यों बन गया वो जानवरों से भी बदतर,
जो नहीं डरता कम से कम अपने साथियों को,
पर आदमी डरा रहा आदमी को यहाँ,

किसी को मजहबी दुश्मनी ने कराया ये,
किसी ने नाम कमाने को कर डाला,
कोई पैसे का ढेर लगाकर खुश हो जाता है,
कोई अपनी नाक बचाता है और कुछ भी वो कर जाता है,
खुद के डर से लड़ने को वो दूसरों को डराता है......................

Tuesday, September 09, 2008

Some Good Quotes I found somewhere

I hope you share this with someone you care about. I just did with my blog friends.

True love is neither physical, nor romantic. True love is an acceptance of all that is, has been, will be, and will not be.

The happiest people don't necessarily have the best of everything; they just make the best of everything they have.

'Life isn't about how to survive the storm, but how to dance in the rain.'

Cheers
SACHIN JAIN

Friday, August 29, 2008

जिंदगी के भवंर में हम कितना फंस गए हैं,


मुझे याद नही की क्या चल रहा था उस वक्त मेरे मन में जब मैंने ये कुछ शब्द लिखे थे, पर एक बात तो है शायद इन शब्दों को लिखने के बाद मुझे ख़ुद पर थोड़ा गर्व हुआ की शायद मैंने कुछ अच्छा लिखा है,
शायद आप लोगो को भी पसंद आए,



जिंदगी के भवंर में हम कितना फंस गए हैं,
ना रहना चाहें इसमे, ना निकलना चाहें इससे,
भवंर में तो सहने पड़े जीवन के थपेडे हमे,
पर निकलने में तो हैं मजबोरियों का समंदर,
जिम्मेदारियां खड़ी है घड़ियाल की तरह,
हमारी बेबसी का तो ये है आलम,
पहचान मिट रही है हमारे वजूद की यहाँ,
फिर भी हमे पसंद है रहना भवंर में,
क्योंकि निकलकर तो डर है डूब जाने का,
भवंर में कम से कम जीवन तो है हमारे पास,
ना चाहें हम कुछ भी अलग जीवन से,
बने हुए रास्तों पर ही चलना चाहें हम,
पर शायद नही सोचते हम कभी,
कुछ अलग प्रयास ही बनते हिं एक वजूद को,
निकलकर अगर डूब भी गए तो क्या,
जब एक दिन डूबना ही है हम सब को ,
वजूद और पहचान तो रह जाएगी हमारी यहाँ ,
कम से कम भंवर से तो निकलेंगे हम ,
सिर्फ़ धोएँगे नही इस जीवन नैया को ,
वास्तव में जिएंगे हम अपने इस जीवन को वास्तव में जिएंगे ………………………………………………….
सचिन जैन

Monday, August 25, 2008

वफ़ा पे उनकी न इतना गुरुर कर,


वफ़ा पे उनकी न इतना गुरुर कर,
अगर वो बेफावा निकले तो टूट जाएगा,
हसीनो की तो आदात है बेवफाई की,
वफ़ा तो बस एक अदा है दिल लगाने की,
बेफवाई तो उनकी हस्ती में एक सितारा जोड़ जाएगी,
तेरी हस्ती का तो नामोनिशान ही मिट जाएगा,
तू तो जिंदगी भर सोचता रहेगा की क्या मजबूरियां रही की वो बेवफा निकले,
कुछ मजबूरियां तो तेरी भी तो रही होंगी.......!!!!
जब तुने वफ़ा की तो वो क्यों बेवफा निकले .......

सचिन जैन

Wednesday, August 13, 2008

रस्ते कितने चला मैं मंजिल को पाने को,

रास्ते कितने चला मैं मंजिल को पाने को,
मैं यूँही चलता रहा और दूरियां बढती रही,
कुछ दूर चलकर आएगी मंजिल मेरी,
ख़त्म होगा ये सफर और ये मारा-मारी,
बस इसी आशा को लेकर बढता रहा,
पर मैं यूँही बढता रहा और दूरियां बढती रही,
सफर में मिले मुझे हमसफ़र और भी बहुत,
कुछ ने बदले रास्ते और कुछ की थी मंजिल अलग,
जो मिला मुझसे मैं उससे मुस्कराकर मिला,
कुछ मेरे साथी बने और कुछ बिछड़ते चले गए,
एक दिन थक जाऊँगा मैं इस सफर में,
ख़त्म होगा ये सफर और ये मारा-मारी,
दोस्तों वो दिन होगा मेरी जिंदगी का आखरी,
पर मंजिल की दूरियां तब भी कायम रहेंगी,
क्योंकि मैं चलता रहूँगा और दूरियां बढती रहेंगी...............


SACHIN JAIN

Wednesday, August 06, 2008

कल्पना मैं जियों मैं या वास्तिवकता का सामना करूं,

कल्पना मैं जियों मैं या वास्तिवकता का सामना करूं,
सच तो ये है दोस्तों , की खोया सा हूँ क्या कर्रों क्या ना कर्रों ,
कल्पना की उड़ान तो आसमान तक जाती है , वास्तविकता धरातल पर ही सर झुकाती है ,
कभी तारों को तोड़ लाने की बात सोची जाती है , कभी चाँद पर हम कल्पना में घर बनाते है ,
कभी किसी सपने को हकीकत से ज्यादा सोच लेते हिं , कभी किसी एक पल की खातिर सब कुछ छोड़ देते हिं ....................

मेरा २६ वा जन्मदिन

Completed another year of life today :) 6th Aug 2008, It has been 26 years from the time I am on this earth and exploring the life as much as possible and God helped me to explore that in many ways :) HE was taking my examinations time by time :)


The year which just completed was something very interesting, I learned meaning of Life...........now a days happy, satisfied, cool and confident.........and that much confident that sometimes people do not believe on my talks but let me assure the world that I will do what ever I want to do in my own way :)

The meaning of happiness comes when u leave expectations from anybody :P it is very true, the day i found that truth i am more happy and more satisfied with the life,

In this year i also tried to realize some of my dreams :) actually still working hard to realize them......................and thats why coming year is going to be an important part of my life :) Need all people wishes


सपने हजार, बातें हजार,उम्मीदे तो पचासं हजार,
डरना नहीं, झुकना नहीं, बीच में रुकना नहीं,
पहुचंना है बुलन्दियों पर, इतना तो विश्वास है,
बुलन्दियों को बुलन्द करना आरजू है मेरी,

ख्वाब अक्सर टूटते हैं जिन्दगी की जद्दोजहद में,
हर टूटते ख्वाब के बाद एक नया ख्वाब बनाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ…………………..

Tuesday, July 29, 2008

सोते मैं जो देखे जाते............

सोते मैं जो देखे जाते, वो अक्सर सपने रह जाते,
जिनसे नीदें उड़ जाती हैं, वो ही सपने सच हो पाते,
नीदों में तो सबको आता है सपनो में खोये रहना,
सपनो की खातिर नीदें उड़ जाए ऐसा कम ही होता है,

Tuesday, July 22, 2008

गर्व होता था मुझे कभी हिन्दुस्तानी होने पर,

गर्व होता था मुझे कभी हिन्दुस्तानी होने पर,
शर्म आती है मुझे अब हिन्दुस्तानी होने पर,
शरमसार हुआ है हर हिदुस्त्तानी पर सरकार खुशी मानती है,
लोकतंत्र की दुहाई देकर, नोटतंत्र चलाती है,
कुर्सी की दौड़ में पहले भी छिप-छिप कर बहुत खेल हुए,
इस बार तो ना खेल रहा ना दौड़ रही,
ईमान,धरम को मरे तो हुए बरसों मेरे यारो,
बची हुई शर्म की भी शमशान को कंधा दे आए,
दुःख इस बात की नही जो हुआ, वो तो सबको पता था,
दुःख इस बात का है की ५५० मैं से एक की भी आत्मा नही दिक्कारी,
नही होगा कुछ कहने से इनको, ये भी समाज का हिसा है,
हर आदमी हम सब मैं से ऐसा है, बस मौका मिलने का किस्सा है........will continue can not complete today

Thursday, May 08, 2008

बहुत पहले लिखी हुई लिनेस है ये..........:)

नशा भी जरूरी है जिंदगी में, होश की कीमत समझने को,
अदा भी जरूरी है जिंदगी में, कुछ यादें छोड़ जाने को,
वफ़ा भी जरूरी है जिंदगी में, किसी को चाहने को,
और एक बेवफा भी जरूरी है जिंदगी में, प्यार का अहसास जगाने को,
यारो इस्स्लिए ना वफ़ा दूंद्ताहूँ ना दिलरुबा दूंद्ता हूँ, मैं तो बस एक बेवफा दूंद्ता हूँ,

Friday, April 25, 2008

कभी कभी डर लगता है मुझे कुछ बातें सोचकर,

कभी कभी डर लगता है मुझे कुछ बातें सोचकर,
फिर लगता है डर कैसा जब कुछ सपने हैं और सब अपने है,
कभी सारा संसार सूना सूना सा लगने लगता है,
फिर कभी सारा जहाँ अपना सा लगने लगता है,
कभी उस ऊपर वाले से जिद का मन करता है,
फिर कभी सब कुछ भुलाकर उससे कुछ मांगने का मन करता है,
कभी लगता है कि मैं सब कुछ कर सकता हूँ,
फिर डर जाता हूँ कि ज्यादा तो नही सोच रहा हूँ मैं,
कभी अचानक मन टूट सा जाता है,
फिर कभी विश्वास सा आता है और बातें बना जाता हूँ :) ,
कभी भी हारने से डर नही लगता मुझको,
डर फिर भी लगता है ना जीत पाने का............