Sunday, October 15, 2006

Safar ek naya shuru ho pada he........


These are few lines I have written on the first day of my job..........

Safar Ek naya shuru ho Chala he,
Ummedo umango ka nashaa sa Chada he,
anubhaw puraane, yaadein puraani,
baanaai he humko nai ek kahaani,
Sunani he sabki baate sayaani,
Karni he kuch ab to manmaani,
Chamaknaa he jaise aasmaan me sooraj,
Dikhnaa he jaise gagan me sitaare,
Safar to chale hein bahut humne pahle,
magar is safar me bahut kuch he paana,
raah me milenge bahut se anjaane,
sabhi se milkar hume he muskuraana,
sikhaayaa he duniyaa ne bahut kuch humko,
un sab baaton ko yahan he aazmana,
jaana he humko aasama se bhi aage,
kadinaayion ko he saari bhool jaanaa,
aashaayein adhik he, vishwas he poora humko,
Jeet aakhirkaar hai humko ek din he jaanaa,
karna he kuch aisa raha jaae naam apnaa,
maksad he ek alag pahchaan choor jaanaa.....

SACHIN JAIN

Thursday, October 05, 2006

इन लड़कियों की क्या बत्ताएं इनकी हर अदा है निराली

इन लड़कियों की क्या बत्ताएं इनकी हर अदा है निराली
पैसों में हमेशा संदल है और मुह में हमेशा गाली
हम लडको को कुछ नहीं समझती होती है ये नखरे वाली
पर इन्हें क्या पता बिना लडको के जीवन है इनका खाली

लड़के करें ना अगर छेड़खानी तो सजने सवांरने का क्या फायदा
देख कर इनको ना वो सीटी बजाएं तो यूँ मटकने का क्या फायदा
सुनकर इनका काम टाल जाए तो यूँ मुस्कराने का क्या फायदा
देखकर इनको ना वो आहें भरे तो छोटे कपडे पहनने का क्या फायदा

Friday, June 09, 2006

इससे तो अच्छी थी धरती इंसानो से खाली

ऊपर वाला भी अक्सर बैठा हुआ सोचता होगा,
कि मैने ये क्या चीज़ इंसान बना ड़ाली,
दिया था मैने इसे प्यार और मोहब्बत का संदेश,
हर तरफ़ इसने सिर्फ़ नफ़रत फ़ैला ड़ाली,

ना सीखा इसने कुछ जानवर से भी,
जो नहीं ड़राते कम से कम अपने साथियों को,
पर इसने इंसानो को भी नहीं बक्शा,
उन्हे मारकर इसने एक नई इबादत लिख ड़ाली,

बच्चे कहे जाते थे खुदा का रूप और पहचान,
खुदा के नाम पर इसने बच्चो को भी नहीं बक्शा,
मज़हबी दुश्मनी की हवा में इसने मेरे यारो,
इंसानियत के मज़हब को बदनाम कर दिया,

कहते थे कभी इंसानियत भी एक धर्म,
पर इसने इंसानियत की पहचान मिटा दी,
कहते थे,खुदा की नैमत है इंसान पर,
इसकी हरकतो ने इस नैमत का कत्ले-आम कर दिया,

यंकी है मुझको कि अक्सर खुदा भी सोचता होगा,
कि क्यूँ मैने बक्शी इंसान को इतनी ताकत,
कि धरती से प्यार-मोहब्बत का नाम मिटने को आया,
जिधर देखो इंसान इंसान से लड़ता नज़र आया,

सोचते-सोचते उसको ये जरूर ख्याल आया होगा,
कि हाय ये क्या चीज मैने इंसान बना ड़ाली,
कुछ भी तो नहीं अच्छा छोड़ा इसने यहाँ,
इससे तो अच्छी थी धरती इंसानो से खाली……………….


12-09-2004 सचिन जैन

Saturday, May 27, 2006

मनुष्य सभंल,
तेरी रक्षा कोई भगवान नहीं आने वाला,
तुझे स्वयं ही डालना होगा, अपने मुहँ में निवाला,
ये कलयुग है,
यहाँ ना किसी अहिल्या को बचाने कोइ राम आएगा,
ना किसी द्रौपदी को बचाने कोइ क्रष्ण आएगा,
यहाँ ना कोइ अपना है,
यहाँ सब कुछ तेरे हाथ में है, तुझे कोइ नहीं बताएगा
तु ही अपनी किस्मत बिगाडेगा, तु ही बनाएगा,

वक्त बहुत बेरहम है,
जब वक्त निकल जाएगा,तो बहुत पछ्ताएगा,
बहुत चीखेगा चिल्लाएगा, रो-रो के भगवान को बुलाएगा,
क्या-क्या नहीं किया है,
जगंल के जगंल उजाड़े तूने, नस्लें की नस्लें बिगाड़ी तूने,
हवा में घोला प्रदूषण का जहर,पानी को भी नहीं छोड़ा तूने,
भगवान को भी नहीं बक्शा,
धर्म के नाम पर लड़ा तू, भगवान को भी बेच ड़ाला तूने,
भ्रष्टाचार को अपनाकर, शिष्टाचार को भुलाया तूने,
कुछ नहीं सोचा,
पल भर में जीवन नष्ट हो, ऐसे बम बनाए तूने,
क्या-क्या नहीं किया, बिना सोचे बिना जाने,

पर मेरी बात याद रख,
तेरी रक्षा कोइ भगवान नहीं आने वाला,
तुझे स्वयं ही डालना होगा अपने मुँह में निवाला…..

19-04-2002
सचिन जैन

Friday, April 14, 2006

स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ,

Inhi shabdo mai main khud ko ache se bata saktaa hoon.

स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ,

सिखाया दुनिया ने जो उद्धत करना चाहता हूँ,

कुछ सरल, कुछ सुमधुर है व्यवहार मेरा,
कुछ बड़ा , कुछ विचित्र है आकार मेरा,
गर्व खुद पर,आत्मविश्वाश भी अधिक है,
दुनिया से अलग हूँ ,अहसास भी तनिक है,

भीड़ है चारो तरफ़, ना लगता है कोई अपना,
इस स्वार्थी दुनिया से अलग,एक नई दुनिया बसाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ………………..

सोच ज्यादा ,समझ ज्यादा,कुछ नया करने का नशा,
काम ऎसे करता रहूँ,कोइ ना हो मुझसे खफ़ा,
भाषा मधुर,भावुक ह्र्दय, सब के मन को मैं भाऊँ,
जिद्दी बहुत,कुछ जटिल भी, पर बात सब की मान जाऊँ,

बांधकर मैं पैर अपने,कब से धरती पर खड़ा हूँ,
अब तो मैं बस एक ऊचीं उड़ान भरना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ.........

विश्वाश उस पर,यकीं खुद पर कि कुछ गलत होगा नहीं
जोश इतना,जूनून इतना, असंभव कुछ भी नहीं,
ना पसंद मुझको, कि तारों की तरह मैं टिमटिमाऊँ,
कुछ ऎसा करूँ,कि सूरज कि तरह मैं जगमगाऊँ,

सपने बड़े,आशा अधिक, मन में उम्मीदों का तूफ़ां,
चाँद पर एक आशियाना मैं बनाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ.........

हसंना,हंसाना, बातें करना मुझको खूब भाता,
जो मिले मुझको,वो भूल ना मुझको पाता,
कोई साथी तो मिलेगा जिन्दगी की राहों में,
कब से रास्ते पर नजरें लगाए देखता हूँ,

क्या हुआ जो मैं उससे कह ना पाऊगां कभी,
उसकी यादें और भोलापन दिल में बसाये रखना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ..........

कुछ लोगो के दिल में है बहुत सम्मान मेरा,
कुछ को लगता है कि मुझमे है अभिमान भरा,
कुछ करें विरोध मेरा,मुसीबत कुछ मुझे बताएं,
सबकी बातें अनसुनी कर,मन की मैं करता हि जाऊँ,

दुनिया चाहे कितनी भी ठोकरे मुझको खिलाए,
जैसा हूँ मैं,वैसा ही बने रहना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ.............

हर पल है कोशिश मेरी, जीवन से कुछ सीख पाऊं,
हर व्यक्ति की अचाई को, मैं अपने में बसा जाऊं,
ना भाषा का ज्ञान मुझे, ना साहित्य पड़ा मैंने,
मन में मेरे जो भी आए, बस वोही मैं लिखता जाऊं,

मुझको समझेंगे लोग मेरे मरने के बाद, अभी कद्र नहीं इन्हें मेरी बातों की,
कुछ ऐसे लिखकर कविताएँ, मैं अपनी यादों को छोड़ जाना चाहता हूँ...

डगर जीवन की मुश्किल है ,आसान नहीं है पाना कुछ भी,
चलना है हमेशा मुझको,बीच में रुकना ना कभी,
इम्तहान जिदंगी के दिये जाऊगां मैं मुस्कराकर,
मुश्किलें आ जाए कितनी भी टूट मैं ना पाऊगां,

कहते हैं कठपुतली बनकर नाचते हैं हम सब उसके हाथॊ की,
तन मेरे कितना भी नाचे, मन को अपने बस मैं रखना चाहता हूँ ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ…………………..

सपने हजार, बातें हजार,उम्मीदे तो पचासं हजार,
डरना नहीं, झुकना नहीं, बीच में रुकना नहीं,
पहुचंना है बुलन्दियों पर, इतना तो विश्वास है,
बुलन्दियों को बुलन्द करना आरजू है मेरी,

ख्वाब अक्सर टूटते हैं जिन्दगी की जद्दोजहद में,
हर टूटते ख्वाब के बाद एक नया ख्वाब बनाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ…………………..

हर पल है कोशिश मेरी, जीवन से कुछ सीख पाऊं,
हर व्यक्ति की अचाई को, मैं अपने में बसा जाऊं,
ना भाषा का ज्ञान मुझे, ना साहित्य पड़ा मैंने,
मन में मेरे जो भी आए, बस वोही मैं लिखता जाऊं,

मुझको समझेंगे लोग मेरे मरने के बाद, अभी कद्र नहीं इन्हें मेरी बातों की,
कुछ ऐसे लिखकर कविताएँ, मैं अपनी यादों को छोड़ जाना चाहता हूँ...

देखता हूँ ख्वाब मैं,बन्द पलको से भी,खुली आँखो से भी,
जीता हूँ मैं, इस दुनिया मे भी,अपनी दुनिया में भी,
करना चाहूँ ऐसे काम ,जो पहचान मेरी छोड़ जाए,
जब मरूँ दो चार लोगो कि आँखो में सच्चे आँसू आए,

ड़र है मुझको,डूब ना जाए साहिल पर किश्ती मेरी,
दिल में मेरे गम बहुत हैं, पर मुस्कराना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ..........

Wednesday, April 05, 2006

टूटकर जो गिरा आसमां से कभी,

These Few Lines I have written when i was not doing well in my personnel life.......................this is because i want to inspire myself................







टूटकर जो गिरा आसमां से कभी,
ऎसा तारा ना बनना मुझको कभी,
उस तारे को क्युं कोइ सितारा
कहेगा,
जो टूटकर आसमां से गिरेगा,
सूरज की तरह जो जगमग सदा रहेगा,
उस तारे को ही सब सितारा कहेगें,
एक ऎसा हि सितारा बनना हे मुझे
भी,
किसी तारे की तरह ना टूटकर
गिरना है कभी,
चमक होगी मेरी भी सूरज की तरह
कभी ,
कईं चाँद मैं अपनी रोशनी से
चमकाऊगां,
ना अपनी चमक पर कभी ईतराउगां,
उस चमक से मिलेगा सभी का प्यार
मुझे,
होगा कुछ वजूद अपना दुनिया से
अलग,
छोडूगां कुछ नाम दquot;र पह्चान भी,
टूटकर जो गिरा आसमां से कभी,
ऎसा तारा ना बनना मुझको कभी,

सचिन जैन

Sunday, March 26, 2006

Bewafai

wafa pe tu unki na itnaa guroor kar,
agar wo befaagar wo bewafa nikle to toot jaega,
haseeno ki to aadat he bewafai ki,
wafa to bus ek adaa he dil lagaane ki,
bewafai to unki hasti me ek sitara jod jaaegi,
teri hasti to tootkar bhikhar jaaegi,
Tu to jindgi bhar yahi sochataa rahega,
ki kya majbooriyan rahi jo wo bewafa nikle,
kuch majbooriyan to teri bhi rahi hongi,
jo tune wafa ki to wo kyon bewfa nikle .............

Thursday, February 23, 2006

साहित्य

Ye kavita mene ek naatak "Ek Aur Draunachary" dekhkar likhi thi.Us naatak me aaj ke yug ke ek vyakti ki tulna MAHABHARAT ke Draunachary se ki gai thi.Usme un dono(aaj ka vyakti aurMAHABHARAT ke Draunachary) antarman ka dwand bahut hi sundar terike se dikhya gaya tha.Isko dekhkar aisa laga ki "RAMAYAN AUR MAHABHARAT" aise mahakavya kisi bhi yug ke saath jode jaa sakte hein.Yahi unki mahantaa he.

साहित्य
हर शब्द हो तीर सा,हर भाव हो कटार सा,
हर एक वाक्य पर लगे कि सच कहा और बस सच कहा,
लगे जब कि हर “मैं” से जुडा है व़जूद मेरा,
लगे जब कि हर “तुम” में है कोई अपने पहचान का,
लगे जब कि कितना करीब मेरे है “इसकी” कहानी,
लगे जब कि “वही” है मेरी सच,मेरी ही कहानी,
हर शक्स की पहचान का “जिसमें” हो दर्शन,
जीवन की उल्झन का “जिसमें” हो चित्रण,
मनुष्य के भावों का “जिसमें” हो वर्णन,
दिलो दिमाग पर “वो” एक असर छोड़ जाए,
कुछ करे “वो” अपने युग का प्रतिनिधित्व,
कुछ कहे “वो” आने वाले युग की कहानी,
कुछ छाप छोड़ जाए “वो” बीते युग की,
“उसी” को कहुँ मैं सच्चा साहित्य ,
“वही” है सचमुच सच्चा साहित्य ,

सचिन जैन

Friday, February 17, 2006

जिन्दगी

जिन्दगी बहुत से इम्तहान लेती हे,
कई बार बिल्कुल तोड देती हे,
सभी ख्वाइशें पल में बिखर जाती हें,
सभी चाह्तें दिल मे दबी रह जाती हें,
कुछ ना कर पाऐं ऐसे उलझ जातें हें,
हम इन्सान तो कुछ ना कर पातें हें,
खुद पर यकीं करना और लड्ते रहना,
हम इन्सानो का यहि तो हे काम,
हिम्मत ओर धेर्य बनाते हें इस अदने से जीवन को महान,
इम्तहान तो जीवन के साथ लगे हि रहेंगे,
बिना इनके जीवन क कोइ मतलब भी नहीं रह जाएगा,
हर इम्तहान मुस्कराकर देना हे,
हर समय कुछ नया करने कि सोचना हे,
हो जाए तो ठीक वरना फ़िर एक नई तम्मना,
ये तम्मनाऎं ही तो जीवन तो नया रूप देगी,
एक अलग पह्चान इस जीवन कि छोड देगी,

Friday, January 27, 2006

This is Probably my one of Best the Till Now


Me Kafi dino se ye soch raha hoon ki us din maine pata nahi kya socha tha i did not know how it comes to my mind but This is Probably my one of my BEST Till Now and after writing that i think that YES NOW I CAN SAY PROUDLY THAT I WRITE HINDI POETRY

Jindgi Ke Bhanwar main Hum Kitne Fans Gae,
Na Rahna Chahe Usme Na hi Chahe Usse Nikalna,
Agar Rahein to Pade Sahne Jeevan Ke Thapede Yahan,
Nikalne Ki Rah me he Majbooriyaon Ka Samandar,
Jimmedariyan Khadi hein Ghadiyal ki tarah,
Hamari Bebasi ka to ye he Aalam,
Pahchan mit rahi he humare Wajood ki yahan,
Phir bhi hume Bhanwar me rahna hi pasand he,
Kyonki Nikalkar to Darr he Doob Jane Ka,
Bhanwar me kam se kam Jeevan to he Humare pass,
Na Chahein Kuch Bhi alag Jeevan se Hum,
Bane hue Raste par hi Chanla Chahein Hum sab,
Par Shayad Nahi Sochte Kabhi Hum,
Kuch Alag Prayas hi Banate hein ek Wajood ko,
Nikalkar Hum Doob Bhi Gae to Kya Hoga,
Jab Ek Din Doobna Hi he Hum sab ko,
Wajood or Pahchan to rah Jaegi Humari Yahan,
Kam se Kam Bhanwar se to niklenge Hum,
Sirf Dhoenge nahi IS JEEVAN Naiya Ko,
Vastav me Jienge Hum apne is Jeevan koVastav me Jienge ………………………………………………….SACHIN JAIN