Thursday, February 23, 2006

साहित्य

Ye kavita mene ek naatak "Ek Aur Draunachary" dekhkar likhi thi.Us naatak me aaj ke yug ke ek vyakti ki tulna MAHABHARAT ke Draunachary se ki gai thi.Usme un dono(aaj ka vyakti aurMAHABHARAT ke Draunachary) antarman ka dwand bahut hi sundar terike se dikhya gaya tha.Isko dekhkar aisa laga ki "RAMAYAN AUR MAHABHARAT" aise mahakavya kisi bhi yug ke saath jode jaa sakte hein.Yahi unki mahantaa he.

साहित्य
हर शब्द हो तीर सा,हर भाव हो कटार सा,
हर एक वाक्य पर लगे कि सच कहा और बस सच कहा,
लगे जब कि हर “मैं” से जुडा है व़जूद मेरा,
लगे जब कि हर “तुम” में है कोई अपने पहचान का,
लगे जब कि कितना करीब मेरे है “इसकी” कहानी,
लगे जब कि “वही” है मेरी सच,मेरी ही कहानी,
हर शक्स की पहचान का “जिसमें” हो दर्शन,
जीवन की उल्झन का “जिसमें” हो चित्रण,
मनुष्य के भावों का “जिसमें” हो वर्णन,
दिलो दिमाग पर “वो” एक असर छोड़ जाए,
कुछ करे “वो” अपने युग का प्रतिनिधित्व,
कुछ कहे “वो” आने वाले युग की कहानी,
कुछ छाप छोड़ जाए “वो” बीते युग की,
“उसी” को कहुँ मैं सच्चा साहित्य ,
“वही” है सचमुच सच्चा साहित्य ,

सचिन जैन

Friday, February 17, 2006

जिन्दगी

जिन्दगी बहुत से इम्तहान लेती हे,
कई बार बिल्कुल तोड देती हे,
सभी ख्वाइशें पल में बिखर जाती हें,
सभी चाह्तें दिल मे दबी रह जाती हें,
कुछ ना कर पाऐं ऐसे उलझ जातें हें,
हम इन्सान तो कुछ ना कर पातें हें,
खुद पर यकीं करना और लड्ते रहना,
हम इन्सानो का यहि तो हे काम,
हिम्मत ओर धेर्य बनाते हें इस अदने से जीवन को महान,
इम्तहान तो जीवन के साथ लगे हि रहेंगे,
बिना इनके जीवन क कोइ मतलब भी नहीं रह जाएगा,
हर इम्तहान मुस्कराकर देना हे,
हर समय कुछ नया करने कि सोचना हे,
हो जाए तो ठीक वरना फ़िर एक नई तम्मना,
ये तम्मनाऎं ही तो जीवन तो नया रूप देगी,
एक अलग पह्चान इस जीवन कि छोड देगी,