Thursday, September 18, 2008

मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है......

मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है,
दिलों में दूरियां तो पहले ही थीं, अब चिंगारियां भी लगाई हैं,
इबादत का मतलब भी मालूम नहीं जिन्हें शायद,
धमाकों को वो खुदा की इबादत कहते हैं,
किताबें पढ़ने की उम्र में किसी ने बम भी बनाए हैं,
पूछो जरा लोगों से कि किस धर्म ने इसको इबादत कहा है,
मानवता की मौत जब होती है, जीत का अहसास किसी को होता होगा,
इंसानियत की ताकत का अंदाजा नहीं दहशतगर्दो को,
इसको आसानी से दहलाया नहीं जा सकता........................

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है!

आपके विचार बहुत परिपक्व लगे; लिखते रहिये।

अविनाश वाचस्पति said...

एक करारा तमाचा है
दहशतगर्दों की गंदी
मानसिकता पर
ऐसे तमाचे जड़ते
आगे रहिए बढ़ते।

सुशील छौक्कर said...

सही कहते हो दोस्त।
इबादत का मतलब भी मालूम नहीं जिन्हें शायद,
धमाकों को वो खुदा की इबादत कहते हैं
बहुत ही उम्दा।