Wednesday, August 06, 2008

कल्पना मैं जियों मैं या वास्तिवकता का सामना करूं,

कल्पना मैं जियों मैं या वास्तिवकता का सामना करूं,
सच तो ये है दोस्तों , की खोया सा हूँ क्या कर्रों क्या ना कर्रों ,
कल्पना की उड़ान तो आसमान तक जाती है , वास्तविकता धरातल पर ही सर झुकाती है ,
कभी तारों को तोड़ लाने की बात सोची जाती है , कभी चाँद पर हम कल्पना में घर बनाते है ,
कभी किसी सपने को हकीकत से ज्यादा सोच लेते हिं , कभी किसी एक पल की खातिर सब कुछ छोड़ देते हिं ....................

1 comment:

Anonymous said...

lekin yehi sach hai mere doston.... aaj ki kalpana kal ki vaastavikta hai....
prashna to yeh hai... vartaman main jeeyon ya bhavishya ka aalingan karoon