Friday, September 26, 2008

पहले सुनते थे की मदद पडोसी से आती है आतंकवाद को,

पहले सुनते थे की मदद पडोसी से आती है आतंकवाद को,
अब देश के पैसो से ही ये आतंकवाद को पालते है,
सरकार हमारी समर्थन करती, वोट बैंक के लालच में,
लोकतंत्र के नाम पर नोतेतंत्र तो था ही दोस्तों,
अब नोतेतंत्र से भी खतरनाक वोटतंत्र चलती है,
कुर्सी की दौड़ में पहले भी छिप-छिप कर बहुत खेल हुए,
इस बार तो ना खेल रहा ना दौड़ रही,
ईमान,धरम को मरे तो हुए बरसों मेरे यारो,
बची हुई शर्म की भी शमशान को कंधा दे आए....

2 comments:

seema gupta said...

ईमान,धरम को मरे तो हुए बरसों मेरे यारो,
बची हुई शर्म की भी शमशान को कंधा दे आए....
" great presentation "

Regards

अनुनाद सिंह said...

आज भी आतंकवाद को सबसे अधिक मदद 'पड़ोसी' ही दे रहे हैं। सभी जागरूक लोगों को इन पड़ोसियों पर नजर रखनी चाहिये।