Tuesday, September 30, 2008

क्या लिखूं अब तो कलम भी रुक गई है मेरी


क्या लिखूं अब तो कलम भी रुक गई है मेरी,
दिल पूछता है मुझसे यहाँ कौन हिन्दू है कौन मुसलमान,
मरने वाला तो हर कोई था बस इंसान,
मतलब नहीं है इन सबको अब इंसानियत समझाने का,
अब तो वक्त है दोस्तों कुछ कर दिखाने का,
मतलब मेरा ये नहीं की हम भी आनाक्वादी बन जाएं,
ये भी नहीं कहीं हम भी विस्फोट करा के आएं,
बस इतनी ही इल्तजा है मेरी सब से,
सब धरम अपना भूल कर इंसानियत को अपनाएं,
और इन मजहबी दुश्मनों को ये समझाएं,
कोशिशे कितनी भी कर लो टूट हम ना पाएंगे,
धर्म-मजहब किसी का भी नाम दो आतंकवाद को मिटाएंगे,
दिलो में दूरियां भले ही दिखती हो हमारे लेकिन,
देश और इंसानियत पर खुद को भी मिटाएंगे....................

SACHIN JAIN

Monday, September 29, 2008

साहित्य

साहित्य
हर शब्द हो तीर सा,हर भाव हो कटार सा,
हर एक वाक्य पर लगे कि सच कहा और बस सच कहा,
लगे जब कि हर “मैं” से जुडा है व़जूद मेरा,
लगे जब कि हर “तुम” में है कोई अपने पहचान का,
लगे जब कि कितना करीब मेरे है “इसकी” कहानी,
लगे जब कि “वही” है मेरी सच,मेरी ही कहानी,
हर शक्स की पहचान का “जिसमें” हो दर्शन,
जीवन की उल्झन का “जिसमें” हो चित्रण,
मनुष्य के भावों का “जिसमें” हो वर्णन,
दिलो दिमाग पर “वो” एक असर छोड़ जाए,
कुछ करे “वो” अपने युग का प्रतिनिधित्व,
कुछ कहे “वो” आने वाले युग की कहानी,
कुछ छाप छोड़ जाए “वो” बीते युग की,
“उसी” को कहुँ मैं सच्चा साहित्य ,
“वही” है सचमुच सच्चा साहित्य ,

Ye kavita mene ek naatak "Ek Aur Draunachary" dekhkar likhi thi.Us naatak me aaj ke yug ke ek vyakti ki tulna MAHABHARAT ke Draunachary se ki gai thi.Usme un dono(aaj ka vyakti aurMAHABHARAT ke Draunachary) antarman ka dwand bahut hi sundar terike se dikhya gaya tha.Isko dekhkar aisa laga ki "RAMAYAN AUR MAHABHARAT" aise mahakavya kisi bhi yug ke saath jode jaa sakte hein.Yahi unki mahantaa he.
सचिन जैन

Friday, September 26, 2008

पहले सुनते थे की मदद पडोसी से आती है आतंकवाद को,

पहले सुनते थे की मदद पडोसी से आती है आतंकवाद को,
अब देश के पैसो से ही ये आतंकवाद को पालते है,
सरकार हमारी समर्थन करती, वोट बैंक के लालच में,
लोकतंत्र के नाम पर नोतेतंत्र तो था ही दोस्तों,
अब नोतेतंत्र से भी खतरनाक वोटतंत्र चलती है,
कुर्सी की दौड़ में पहले भी छिप-छिप कर बहुत खेल हुए,
इस बार तो ना खेल रहा ना दौड़ रही,
ईमान,धरम को मरे तो हुए बरसों मेरे यारो,
बची हुई शर्म की भी शमशान को कंधा दे आए....

जैसे जैसे बारिश की बूंदे जमीन पर पड़ती हैं...


जैसे जैसे बारिश की बूंदे जमीन पर पड़ती हैं,
वैसे ही एक नशा सा दिल में उतरने लगता है,
इस सुहाने मदहोश मौसम में ,
बिना पीए भी तन ये बहकने लगता है,
बस आँखे बंद करके सोचते रहो किसी के बारे में,
दिल तो बस हर बार यही कहने लगता है ,
बदन से एक भीनी सी खुसबू आती है,
जीवन भी महकने सा लगता है,
होठों को रखकर खामोश हमेशा के लिए,
आँखों से बातें करने का दिल करता है,
जैसे लुटा रहा है आसमान बूंदों को ,
किसी पर अपना प्यार लुटाने का दिल करता है,
कुछ नए अरमान जगाकर इस भीगे मौसम में,
किसी को अपना बनाना का दिल करता है,
पड़-पड़ की आवाज़ सुनकर बूंदों की ,
धक-धक सा दिल ये बार-बार करता है,
दीवाना कहीं में हो ना जाऊं इस मौसम में,
दिल को डर हर बार यही लगता है………………

SACHIN JAIN

Sunday, September 21, 2008

चल रहा हूँ मैं तलाश में जिंदगी की..

चल रहा हूँ मैं तलाश में जिंदगी की, और यूँ ही ख़त्म हो रही है जिंदगी मेरी,
ना तलाश हुई मेरी पूरी अब तक, ना रुकी जिंदगी तलाश के इंतजार में,
हर वक्त कुछ नया करने का नशा, जुनून की तरह सवार है मुझ पर,
कुछ पाने की कोशिश में भटक रहा हूँ मैं इस दुनिया की भीड़ में,
कुछ नाम छोड़ जाने की कोशिश में, खुद को ही शायद भुला रहा हूँ मैं,
थोडी पहचान बनाने की खातिर, खुद को मिटा रहा हूँ मैं,
और तलाश तो ये पूरी हो नहीं रही, पर शायद ख़त्म हो रही है जिंदगी मेरी.............

Thursday, September 18, 2008

मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है......

मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है,
दिलों में दूरियां तो पहले ही थीं, अब चिंगारियां भी लगाई हैं,
इबादत का मतलब भी मालूम नहीं जिन्हें शायद,
धमाकों को वो खुदा की इबादत कहते हैं,
किताबें पढ़ने की उम्र में किसी ने बम भी बनाए हैं,
पूछो जरा लोगों से कि किस धर्म ने इसको इबादत कहा है,
मानवता की मौत जब होती है, जीत का अहसास किसी को होता होगा,
इंसानियत की ताकत का अंदाजा नहीं दहशतगर्दो को,
इसको आसानी से दहलाया नहीं जा सकता........................

Monday, September 15, 2008

आदमी डर रहा आदमी से यहाँ, क्यों हमने बनाया ऐसा अपना जहाँ,

आदमी डर रहा आदमी से यहाँ,
क्यों हमने बनाया ऐसा अपना जहाँ,
मह्कानी थी जहाँ प्यार खुशबू,
बहानी थी जहाँ अमन की हवा,
फैलाया वहां नफरतों का धुआं,

चमन में बहार थी कितनी,
फिजा में प्यार था कितना,
उसको हटाकर हमने,
बहाई दुश्मनी की हवा,
जिसके थपेडों से बचना है मुश्किल यहाँ,

बागों में फूल थे कितने ,
कितनी कलियाँ महका करती थी,
हमको वो भी अच्छी नहीं लगी ,
उजाड़कर उनको सिर्फ काटें लगे हमने,
जो उधेड़ रहे आदमी की खाल को यहाँ,

क्यों आदमी भूल गया अपनी पहचान को,
इस दुनिया के सबसे सभ्य जीव के नाम को ,
क्यों बन गया वो जानवरों से भी बदतर,
जो नहीं डरता कम से कम अपने साथियों को,
पर आदमी डरा रहा आदमी को यहाँ,

किसी को मजहबी दुश्मनी ने कराया ये,
किसी ने नाम कमाने को कर डाला,
कोई पैसे का ढेर लगाकर खुश हो जाता है,
कोई अपनी नाक बचाता है और कुछ भी वो कर जाता है,
खुद के डर से लड़ने को वो दूसरों को डराता है......................

Tuesday, September 09, 2008

Some Good Quotes I found somewhere

I hope you share this with someone you care about. I just did with my blog friends.

True love is neither physical, nor romantic. True love is an acceptance of all that is, has been, will be, and will not be.

The happiest people don't necessarily have the best of everything; they just make the best of everything they have.

'Life isn't about how to survive the storm, but how to dance in the rain.'

Cheers
SACHIN JAIN