Friday, August 29, 2008

जिंदगी के भवंर में हम कितना फंस गए हैं,


मुझे याद नही की क्या चल रहा था उस वक्त मेरे मन में जब मैंने ये कुछ शब्द लिखे थे, पर एक बात तो है शायद इन शब्दों को लिखने के बाद मुझे ख़ुद पर थोड़ा गर्व हुआ की शायद मैंने कुछ अच्छा लिखा है,
शायद आप लोगो को भी पसंद आए,



जिंदगी के भवंर में हम कितना फंस गए हैं,
ना रहना चाहें इसमे, ना निकलना चाहें इससे,
भवंर में तो सहने पड़े जीवन के थपेडे हमे,
पर निकलने में तो हैं मजबोरियों का समंदर,
जिम्मेदारियां खड़ी है घड़ियाल की तरह,
हमारी बेबसी का तो ये है आलम,
पहचान मिट रही है हमारे वजूद की यहाँ,
फिर भी हमे पसंद है रहना भवंर में,
क्योंकि निकलकर तो डर है डूब जाने का,
भवंर में कम से कम जीवन तो है हमारे पास,
ना चाहें हम कुछ भी अलग जीवन से,
बने हुए रास्तों पर ही चलना चाहें हम,
पर शायद नही सोचते हम कभी,
कुछ अलग प्रयास ही बनते हिं एक वजूद को,
निकलकर अगर डूब भी गए तो क्या,
जब एक दिन डूबना ही है हम सब को ,
वजूद और पहचान तो रह जाएगी हमारी यहाँ ,
कम से कम भंवर से तो निकलेंगे हम ,
सिर्फ़ धोएँगे नही इस जीवन नैया को ,
वास्तव में जिएंगे हम अपने इस जीवन को वास्तव में जिएंगे ………………………………………………….
सचिन जैन

Monday, August 25, 2008

वफ़ा पे उनकी न इतना गुरुर कर,


वफ़ा पे उनकी न इतना गुरुर कर,
अगर वो बेफावा निकले तो टूट जाएगा,
हसीनो की तो आदात है बेवफाई की,
वफ़ा तो बस एक अदा है दिल लगाने की,
बेफवाई तो उनकी हस्ती में एक सितारा जोड़ जाएगी,
तेरी हस्ती का तो नामोनिशान ही मिट जाएगा,
तू तो जिंदगी भर सोचता रहेगा की क्या मजबूरियां रही की वो बेवफा निकले,
कुछ मजबूरियां तो तेरी भी तो रही होंगी.......!!!!
जब तुने वफ़ा की तो वो क्यों बेवफा निकले .......

सचिन जैन

Wednesday, August 13, 2008

रस्ते कितने चला मैं मंजिल को पाने को,

रास्ते कितने चला मैं मंजिल को पाने को,
मैं यूँही चलता रहा और दूरियां बढती रही,
कुछ दूर चलकर आएगी मंजिल मेरी,
ख़त्म होगा ये सफर और ये मारा-मारी,
बस इसी आशा को लेकर बढता रहा,
पर मैं यूँही बढता रहा और दूरियां बढती रही,
सफर में मिले मुझे हमसफ़र और भी बहुत,
कुछ ने बदले रास्ते और कुछ की थी मंजिल अलग,
जो मिला मुझसे मैं उससे मुस्कराकर मिला,
कुछ मेरे साथी बने और कुछ बिछड़ते चले गए,
एक दिन थक जाऊँगा मैं इस सफर में,
ख़त्म होगा ये सफर और ये मारा-मारी,
दोस्तों वो दिन होगा मेरी जिंदगी का आखरी,
पर मंजिल की दूरियां तब भी कायम रहेंगी,
क्योंकि मैं चलता रहूँगा और दूरियां बढती रहेंगी...............


SACHIN JAIN

Wednesday, August 06, 2008

कल्पना मैं जियों मैं या वास्तिवकता का सामना करूं,

कल्पना मैं जियों मैं या वास्तिवकता का सामना करूं,
सच तो ये है दोस्तों , की खोया सा हूँ क्या कर्रों क्या ना कर्रों ,
कल्पना की उड़ान तो आसमान तक जाती है , वास्तविकता धरातल पर ही सर झुकाती है ,
कभी तारों को तोड़ लाने की बात सोची जाती है , कभी चाँद पर हम कल्पना में घर बनाते है ,
कभी किसी सपने को हकीकत से ज्यादा सोच लेते हिं , कभी किसी एक पल की खातिर सब कुछ छोड़ देते हिं ....................

मेरा २६ वा जन्मदिन

Completed another year of life today :) 6th Aug 2008, It has been 26 years from the time I am on this earth and exploring the life as much as possible and God helped me to explore that in many ways :) HE was taking my examinations time by time :)


The year which just completed was something very interesting, I learned meaning of Life...........now a days happy, satisfied, cool and confident.........and that much confident that sometimes people do not believe on my talks but let me assure the world that I will do what ever I want to do in my own way :)

The meaning of happiness comes when u leave expectations from anybody :P it is very true, the day i found that truth i am more happy and more satisfied with the life,

In this year i also tried to realize some of my dreams :) actually still working hard to realize them......................and thats why coming year is going to be an important part of my life :) Need all people wishes


सपने हजार, बातें हजार,उम्मीदे तो पचासं हजार,
डरना नहीं, झुकना नहीं, बीच में रुकना नहीं,
पहुचंना है बुलन्दियों पर, इतना तो विश्वास है,
बुलन्दियों को बुलन्द करना आरजू है मेरी,

ख्वाब अक्सर टूटते हैं जिन्दगी की जद्दोजहद में,
हर टूटते ख्वाब के बाद एक नया ख्वाब बनाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ…………………..