Friday, October 05, 2007

दोस्तों आज सुनो तुम भी एक बात

दोस्तों आज सुनो तुम भी एक बात
मुझ पर पड़ी है वक़्त की मार,
क्योंकि ये सहा मैंने खुद भी,
इससलिए आपको बताते हैं
बचपन की बात, पंडित जी बैढे है मेरे साथ,
मौसम भी है मस्त उनके हाथ में मेरा हस्त,
हस्त देखकर बोले,म मुह से कुछ मीदे बोल फैंके,
बोले तुम्हारे रहेगा हमेशा महफ़िलों में नाम,
सुनकर हो गया मैं बहुत हैरान,
सोचे पंडित जी कह रहे है तो शायद सच ही होगा,
पर हुआ कुछ यूँ दोस्तों की,
हम नाम वाली महफ़िलो के कभी सुरमा ना बन सके,
पर नाम वाली महफ़िलो के लोगो ने रखा हमारा नाम बदनाम

पहला काम शायद जिसने किया हमें बदनाम,
मैं लोगो से कहता था कुछ बढ़िया, सबको लगता बेकार की पुडिया,
लोग मुझसे जल्दी उकताते पर बेचारे जबरदस्ती मुस्काते,

एक और काम जिसने किया हमें बहुत बदनाम,
शायद लोगो को अपनी तारीफ है पसंद आती,
और झूदी तारीफ करनी हमको नहीं आती,

कुछ को मेरी आदत पसंद नहीं आती,
कुछ को सच्चाई बिल्ल्कुल नहीं भाति,
एक और बात जो आपको बतानी है,
मुझे नहीं मिली है अभी तक सफलता की पुडिया,
इससलिए डर लगता है लाने को जीवन में गुडिया,

और भी ऐसे बहुत है काम है जिसने किया मुझे बदनाम,
लेकिन तुम्हारे पास होंगे बहुत से काम,और हम तो ठहरे बदनाम,

कल तुम सब कुछ बन जाओगे, जीवन में बहुत सफलताक पाओगे,
कुछ हमारी ये कहानी याद रखोगे, कुछ भूल जाएंगे,
जो याद रखेंगे वो अपने बच्चो को हमारी कहानी सुनाएंगे,
हमारे साथ था एक इंसान पर जो था बदनाम,
करता हमशा ऐसा काम की था बहुत बदनाम,

कोशिश करेंगे हम की हो जाए अब इस दुनिया में बदनाम
शायद इसी तरह रह जाए इस दुनिया में अपना नाम........":)




जैसे ही मैंने सुना है farewell है होने वाली,
सोचा क्यूँ ना कुछ कहा जाए फिर से,
पर मैं घबरा गया कुछ सोचकर ,
मुझे 5 sep की याद आई,
सोचा सचिन जैन अब स्तागे पर गए तो होगी पिटाई ,
सेंदालो के साथ साथ लात घूंसों से भी होगी धुनाई,
फिर भी मैंने अपने दिल को कुछ हिम्मत बंधाई,
और कुछ लिखने के लिए हमने कलम उठाई,
सोचा अब तक जो लिखा उस पर मिली है गालिया,
चलो कुछ ऐसा लिखते है, शायद मिल जाए कुछ तालियाँ,

सोचते सोचते ख्याल आया,
ना जाने उप्पेर वाले के मन में क्या आई,
जो ये उसने ये हसीनाए बनाई,
ना सोचा उसने यारों इन फिजाओं का,
जो ये खूबसूरत बलाए बना डाली,
ना रहम आया यारो देखो उस्सको इन घटाओं पर,
जो उस्सने ये काली झुल्फे बना डाली,

ना सोचा यारों उस्सने इन फूलो के बारे में,
जो उसने गुलाब से सुन्दर चेहरे बना डाले,
ना आया याद उस्सको यारों चाचाहना चिड़ियों का,
जो उस्सने इनकी मुस्कराहट बना डाली,
ना ही रहम आया उसको इन जवान कलियों पर,
जो उस्सने मार डाले ऐसी कातिल अदाएं बना डाली,
जमी पर था सबसे गहरा समुन्द्र लेकिन मेरे यारो ,
उस्सने समुद्र से गहरी इनकी आँखे बना डाली,
जहाँ में मशहूर थी नजाकत फूल कलियों की,
यहाँ भी उसने होठो में अजब नजाकत दिखलाई,
महकती थी ये हवा कभी मदमस्त होकर,
पर अब जहाँ ये आँचल फैलाएं वही पर खुशबु फैला दे,
चाँद को भी दाग देकर दिया धोखा,
जो जमीं पर चाँद से भी खोबसूरत चेहरे बना डाले,
ना फरक पड़ता था पत्थरों को सूरज की गर्मी से,
पर इनकी आग ने बहुत से पत्थर दिल पिघला डाले,
लगता है बनने को धरती स्वर्ग से सुन्दर,
उसने ये फूल कलियों, फिजाओं से भी सुंदर हसिनाए बना डाली,
ना जाने उप्पेर वाले के मन में क्या आई,
जो ये उसने ये हसीनाए बनाई,

घटाओं से निकलती थी बिजली कभी कभी मेर यारों,
ये जिसको नजर भर देख ले वोही पे बिजली गिर जाए,
कहते है किस्मत से मिल जाता है ताज कुछ लोगो को,
पर इनकी शरारतों ने ना जाने कितने ताज chinwane ,
गवाह है इतिहास इस बात का सदियों से मेरे यारो,
हर लड़ाई में ये हसिनाए सबसे बड़ा कारण कहलाई,

aaj tak maine dekho sach bolaa to hameshaa mili gaaliyaan
aaj dekho kitnaa jhoot bola aur sab ladkiyaan bajaa rahi hai taaliyaan

मेरी जिंदगी में क्यूँ ऐसा लिखा है, जिसे देखो मेरे पीछे पड़ा है ,

मेरी जिंदगी में क्यूँ ऐसा लिखा है, जिसे देखो मेरे पीछे पड़ा है ,
हर आदमी देख कर है मुझे हैरान, और वो करना चाहता है मुझे परेशान ,
मैंने शायद कभी नहीं किया गलत काम, पता नहीं लोग फिर भी क्यूँ है परेशान ,
शायद उनको सच्चाई पसंद नहीं आती, या मेरी आदत उनको नहीं भाती,
कुछ तो है जो लोग इतना जलते हैं, ना जाने क्यूँ घूरकर निकलते है,
मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया, ना किसी का कभी दिल दुखाया,
पर ऐसा क्यूँ है मेरे साथ, आज तक मुझे समझ नही आया,
पता नहीं क्या हुई खता मुझसे, जो उप्पेर वाला रूठ गया मुझसे,
ना जाने उस्सने क्यूँ लिखा,
जो ये चाहे वो ना हो पाए, जो ना चाहे वो हो जाए,
ऐसी हो तकदीर मेरी, मैं जिंदगी भर समझ ना पाऊं

जीवन का भंवर........


फ़ंस से गए हैं,जीवन के इस भंवर में हम कितना,
ना रहना चाहे इसमे, ना ही चाहे इससे निकलना,
अगर रहना चाहे इसमे, तो पड़े जीवन के थपेड़े यहाँ,
अगर निकलना चाहे,तो है मजबूरियों का समंदर,
सामने खड़ी हैं, जिम्मेदारियां घड़ियाल की तरह,
बेबसी ऎसी, कि पहचान मिट रही है खुद के वजूद की,
रहना ही पसंद, क्योंकि निकलकर तो ड़र है डूब जाने का,
जीवन तो है, भवंर में जीने का भ्रम तो बना ही हुआ है,
अलग कुछ नहीं चाहे हम, बने हुए ही रास्तो पर चलना पसंद हमें,
ना बनाते कभी,नया रास्ता जिस पर दुनिया चलना चाहे,
नहीं सोचते हम कभी, कुछ प्रयास ही तो बनाते हैं वजूद को,
नहीं कोशिश करते, कभी हम भवंर से निकलने की,
निकलकर डूब भी गए तो क्या, जब एक दिन ड़ूबना है ही,
अलग पहचान रह जाएगी, भवंर से भी निकल पायेंगे हम,
ढोयेंगे नहीं फ़िर, जियेगें हम इस जीवन को…………………


सचिन जैन