Saturday, May 27, 2006

मनुष्य सभंल,
तेरी रक्षा कोई भगवान नहीं आने वाला,
तुझे स्वयं ही डालना होगा, अपने मुहँ में निवाला,
ये कलयुग है,
यहाँ ना किसी अहिल्या को बचाने कोइ राम आएगा,
ना किसी द्रौपदी को बचाने कोइ क्रष्ण आएगा,
यहाँ ना कोइ अपना है,
यहाँ सब कुछ तेरे हाथ में है, तुझे कोइ नहीं बताएगा
तु ही अपनी किस्मत बिगाडेगा, तु ही बनाएगा,

वक्त बहुत बेरहम है,
जब वक्त निकल जाएगा,तो बहुत पछ्ताएगा,
बहुत चीखेगा चिल्लाएगा, रो-रो के भगवान को बुलाएगा,
क्या-क्या नहीं किया है,
जगंल के जगंल उजाड़े तूने, नस्लें की नस्लें बिगाड़ी तूने,
हवा में घोला प्रदूषण का जहर,पानी को भी नहीं छोड़ा तूने,
भगवान को भी नहीं बक्शा,
धर्म के नाम पर लड़ा तू, भगवान को भी बेच ड़ाला तूने,
भ्रष्टाचार को अपनाकर, शिष्टाचार को भुलाया तूने,
कुछ नहीं सोचा,
पल भर में जीवन नष्ट हो, ऐसे बम बनाए तूने,
क्या-क्या नहीं किया, बिना सोचे बिना जाने,

पर मेरी बात याद रख,
तेरी रक्षा कोइ भगवान नहीं आने वाला,
तुझे स्वयं ही डालना होगा अपने मुँह में निवाला…..

19-04-2002
सचिन जैन

1 comment:

रवि रतलामी said...

हिन्दी चिट्ठा जगत् में आपका स्वागत् है.

एक अनुरोध -

कम से कम साल भर तक तो रोज लिखें :)