Friday, April 14, 2006

स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ,

Inhi shabdo mai main khud ko ache se bata saktaa hoon.

स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ,

सिखाया दुनिया ने जो उद्धत करना चाहता हूँ,

कुछ सरल, कुछ सुमधुर है व्यवहार मेरा,
कुछ बड़ा , कुछ विचित्र है आकार मेरा,
गर्व खुद पर,आत्मविश्वाश भी अधिक है,
दुनिया से अलग हूँ ,अहसास भी तनिक है,

भीड़ है चारो तरफ़, ना लगता है कोई अपना,
इस स्वार्थी दुनिया से अलग,एक नई दुनिया बसाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ………………..

सोच ज्यादा ,समझ ज्यादा,कुछ नया करने का नशा,
काम ऎसे करता रहूँ,कोइ ना हो मुझसे खफ़ा,
भाषा मधुर,भावुक ह्र्दय, सब के मन को मैं भाऊँ,
जिद्दी बहुत,कुछ जटिल भी, पर बात सब की मान जाऊँ,

बांधकर मैं पैर अपने,कब से धरती पर खड़ा हूँ,
अब तो मैं बस एक ऊचीं उड़ान भरना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ.........

विश्वाश उस पर,यकीं खुद पर कि कुछ गलत होगा नहीं
जोश इतना,जूनून इतना, असंभव कुछ भी नहीं,
ना पसंद मुझको, कि तारों की तरह मैं टिमटिमाऊँ,
कुछ ऎसा करूँ,कि सूरज कि तरह मैं जगमगाऊँ,

सपने बड़े,आशा अधिक, मन में उम्मीदों का तूफ़ां,
चाँद पर एक आशियाना मैं बनाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ.........

हसंना,हंसाना, बातें करना मुझको खूब भाता,
जो मिले मुझको,वो भूल ना मुझको पाता,
कोई साथी तो मिलेगा जिन्दगी की राहों में,
कब से रास्ते पर नजरें लगाए देखता हूँ,

क्या हुआ जो मैं उससे कह ना पाऊगां कभी,
उसकी यादें और भोलापन दिल में बसाये रखना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ..........

कुछ लोगो के दिल में है बहुत सम्मान मेरा,
कुछ को लगता है कि मुझमे है अभिमान भरा,
कुछ करें विरोध मेरा,मुसीबत कुछ मुझे बताएं,
सबकी बातें अनसुनी कर,मन की मैं करता हि जाऊँ,

दुनिया चाहे कितनी भी ठोकरे मुझको खिलाए,
जैसा हूँ मैं,वैसा ही बने रहना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ.............

हर पल है कोशिश मेरी, जीवन से कुछ सीख पाऊं,
हर व्यक्ति की अचाई को, मैं अपने में बसा जाऊं,
ना भाषा का ज्ञान मुझे, ना साहित्य पड़ा मैंने,
मन में मेरे जो भी आए, बस वोही मैं लिखता जाऊं,

मुझको समझेंगे लोग मेरे मरने के बाद, अभी कद्र नहीं इन्हें मेरी बातों की,
कुछ ऐसे लिखकर कविताएँ, मैं अपनी यादों को छोड़ जाना चाहता हूँ...

डगर जीवन की मुश्किल है ,आसान नहीं है पाना कुछ भी,
चलना है हमेशा मुझको,बीच में रुकना ना कभी,
इम्तहान जिदंगी के दिये जाऊगां मैं मुस्कराकर,
मुश्किलें आ जाए कितनी भी टूट मैं ना पाऊगां,

कहते हैं कठपुतली बनकर नाचते हैं हम सब उसके हाथॊ की,
तन मेरे कितना भी नाचे, मन को अपने बस मैं रखना चाहता हूँ ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ…………………..

सपने हजार, बातें हजार,उम्मीदे तो पचासं हजार,
डरना नहीं, झुकना नहीं, बीच में रुकना नहीं,
पहुचंना है बुलन्दियों पर, इतना तो विश्वास है,
बुलन्दियों को बुलन्द करना आरजू है मेरी,

ख्वाब अक्सर टूटते हैं जिन्दगी की जद्दोजहद में,
हर टूटते ख्वाब के बाद एक नया ख्वाब बनाना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ…………………..

हर पल है कोशिश मेरी, जीवन से कुछ सीख पाऊं,
हर व्यक्ति की अचाई को, मैं अपने में बसा जाऊं,
ना भाषा का ज्ञान मुझे, ना साहित्य पड़ा मैंने,
मन में मेरे जो भी आए, बस वोही मैं लिखता जाऊं,

मुझको समझेंगे लोग मेरे मरने के बाद, अभी कद्र नहीं इन्हें मेरी बातों की,
कुछ ऐसे लिखकर कविताएँ, मैं अपनी यादों को छोड़ जाना चाहता हूँ...

देखता हूँ ख्वाब मैं,बन्द पलको से भी,खुली आँखो से भी,
जीता हूँ मैं, इस दुनिया मे भी,अपनी दुनिया में भी,
करना चाहूँ ऐसे काम ,जो पहचान मेरी छोड़ जाए,
जब मरूँ दो चार लोगो कि आँखो में सच्चे आँसू आए,

ड़र है मुझको,डूब ना जाए साहिल पर किश्ती मेरी,
दिल में मेरे गम बहुत हैं, पर मुस्कराना चाहता हूँ,
स्वयं को शब्दो में मैं व्यक्त करना चाहता हूँ..........

Wednesday, April 05, 2006

टूटकर जो गिरा आसमां से कभी,

These Few Lines I have written when i was not doing well in my personnel life.......................this is because i want to inspire myself................







टूटकर जो गिरा आसमां से कभी,
ऎसा तारा ना बनना मुझको कभी,
उस तारे को क्युं कोइ सितारा
कहेगा,
जो टूटकर आसमां से गिरेगा,
सूरज की तरह जो जगमग सदा रहेगा,
उस तारे को ही सब सितारा कहेगें,
एक ऎसा हि सितारा बनना हे मुझे
भी,
किसी तारे की तरह ना टूटकर
गिरना है कभी,
चमक होगी मेरी भी सूरज की तरह
कभी ,
कईं चाँद मैं अपनी रोशनी से
चमकाऊगां,
ना अपनी चमक पर कभी ईतराउगां,
उस चमक से मिलेगा सभी का प्यार
मुझे,
होगा कुछ वजूद अपना दुनिया से
अलग,
छोडूगां कुछ नाम दquot;र पह्चान भी,
टूटकर जो गिरा आसमां से कभी,
ऎसा तारा ना बनना मुझको कभी,

सचिन जैन