कभी कभी डर लगता है मुझे कुछ बातें सोचकर,
फिर लगता है डर कैसा जब कुछ सपने हैं और सब अपने है,
कभी सारा संसार सूना सूना सा लगने लगता है,
फिर कभी सारा जहाँ अपना सा लगने लगता है,
कभी उस ऊपर वाले से जिद का मन करता है,
फिर कभी सब कुछ भुलाकर उससे कुछ मांगने का मन करता है,
कभी लगता है कि मैं सब कुछ कर सकता हूँ,
फिर डर जाता हूँ कि ज्यादा तो नही सोच रहा हूँ मैं,
कभी अचानक मन टूट सा जाता है,
फिर कभी विश्वास सा आता है और बातें बना जाता हूँ :) ,
कभी भी हारने से डर नही लगता मुझको,
डर फिर भी लगता है ना जीत पाने का............