ऊपर वाला भी अक्सर बैठा हुआ सोचता होगा,
कि मैने ये क्या चीज़ इंसान बना ड़ाली,
दिया था मैने इसे प्यार और मोहब्बत का संदेश,
हर तरफ़ इसने सिर्फ़ नफ़रत फ़ैला ड़ाली,
ना सीखा इसने कुछ जानवर से भी,
जो नहीं ड़राते कम से कम अपने साथियों को,
पर इसने इंसानो को भी नहीं बक्शा,
उन्हे मारकर इसने एक नई इबादत लिख ड़ाली,
बच्चे कहे जाते थे खुदा का रूप और पहचान,
खुदा के नाम पर इसने बच्चो को भी नहीं बक्शा,
मज़हबी दुश्मनी की हवा में इसने मेरे यारो,
इंसानियत के मज़हब को बदनाम कर दिया,
कहते थे कभी इंसानियत भी एक धर्म,
पर इसने इंसानियत की पहचान मिटा दी,
कहते थे,खुदा की नैमत है इंसान पर,
इसकी हरकतो ने इस नैमत का कत्ले-आम कर दिया,
यंकी है मुझको कि अक्सर खुदा भी सोचता होगा,
कि क्यूँ मैने बक्शी इंसान को इतनी ताकत,
कि धरती से प्यार-मोहब्बत का नाम मिटने को आया,
जिधर देखो इंसान इंसान से लड़ता नज़र आया,
सोचते-सोचते उसको ये जरूर ख्याल आया होगा,
कि हाय ये क्या चीज मैने इंसान बना ड़ाली,
कुछ भी तो नहीं अच्छा छोड़ा इसने यहाँ,
इससे तो अच्छी थी धरती इंसानो से खाली……………….
12-09-2004 सचिन जैन