देखता हूँ ऊपर वाले कब तक तु तड्पाएगा,
एक दिन तो तरस तुझको मुझ पर भी आएगा,
जिद्दी अगर तु है तो मैं भी कुछ कम नहीं,
कोशिश तु कितनी भी कर ले,होगी मेरी आँख नम नहीं,
देह पर अधिकार तेरा इसका चाहे कुछ भी कर ले,
मन मेरा है मेरे बस में तोड उसको कैसे पाएगा,
देखता हूँ कब तक तु मुझे मुशकिले दे पाएगा,
परिक्षाएं ले ले कर तु मेरी थक जाएगा,
हर इम्तहान में तु मुझको तैयार खड़ा पाएगा,
मुश्किलो में भी तु मुझे मुस्कराता पाएगा,
जितना तुझसे हो सके परिक्षाएं ले ले तु मेरी,
देखना ऎ विश्व एक दिन जीत मैं ही जाऊगां.............
Thursday, July 26, 2007
Friday, July 13, 2007
समय का बीतना........
समय का बीतना तो एक सत्य है ,
उस पर विचार का कोई ओचित्य नही है,
विचार तो इस बात पर होना चाहिए कि ,
बीते हुए समय ने ह्में क्या दिया,
मीठे यादें, सुनहरे सपने, कुछ ज्ञान, कुछ विज्ञान,
अजनबी लोग, अनुभव,कुछ असफ़लताएं, कुछ सफ़लताएं,
और ऎसा बहुत कुछ जो इस जीवन के लिए जरूरी था..........
सचिन जैन
उस पर विचार का कोई ओचित्य नही है,
विचार तो इस बात पर होना चाहिए कि ,
बीते हुए समय ने ह्में क्या दिया,
मीठे यादें, सुनहरे सपने, कुछ ज्ञान, कुछ विज्ञान,
अजनबी लोग, अनुभव,कुछ असफ़लताएं, कुछ सफ़लताएं,
और ऎसा बहुत कुछ जो इस जीवन के लिए जरूरी था..........
सचिन जैन
Thursday, July 05, 2007
डर रहा है दिल आज मेरा......
आँखो मैं है मेरे सपने हजार,
यकीं है मुझे अपने सपनो पर भी,
कुछ भी कर सकता हूँ मैं अपने सपनो के लिए,
फ़िर भी एक डर सा है आज सपने टूट जाने का,
बहुत सपने टूटे आज तक मैरे,
पर वो मुझे ना तोड पाए,
ना रुका ना झुका आज तक मैं,
डगर से मुझे हिला ना पाए,
पर ना जाने क्योंं आज एक हल्चल है,
क्यों डर रहा है दिल आज मेरा,
क्यों हो रही है अजब घबराहट सी,
मन मैं उठ रहे हैं हजार तूफ़ां,
बदन में लगी है एक आग सी,
आवाज मैं भी है एक हिच्किचाहट है,
होठ भी आज कापं रहे हैं,
डर नहीं है आज भी मुझको खुद के डूब जाने का,
डर तो है बस अपने सपने टूट जाने का....
सचिन जैन
05-07-07
यकीं है मुझे अपने सपनो पर भी,
कुछ भी कर सकता हूँ मैं अपने सपनो के लिए,
फ़िर भी एक डर सा है आज सपने टूट जाने का,
बहुत सपने टूटे आज तक मैरे,
पर वो मुझे ना तोड पाए,
ना रुका ना झुका आज तक मैं,
डगर से मुझे हिला ना पाए,
पर ना जाने क्योंं आज एक हल्चल है,
क्यों डर रहा है दिल आज मेरा,
क्यों हो रही है अजब घबराहट सी,
मन मैं उठ रहे हैं हजार तूफ़ां,
बदन में लगी है एक आग सी,
आवाज मैं भी है एक हिच्किचाहट है,
होठ भी आज कापं रहे हैं,
डर नहीं है आज भी मुझको खुद के डूब जाने का,
डर तो है बस अपने सपने टूट जाने का....
सचिन जैन
05-07-07
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